तृतीय वार्ता प्रसंग : सो आगे एक बडो नगर आयो । वा ठोर एक बडो नगरशेठ हतो ताकी देह छूटी ही । वाके चार बेटा हते सो तीनि बेटा तो बडे हते ओर सबसे छोटे दामोदरदास हुते । तब उन बडे भाईनने बिचार कीनो जो होई तो यह द्रव्य सब अपनो अपनो बांटि लेई। काहे में ? द्रव्य हे सो क्लेशकों मूल हे तातें आपसमें हमारो हित न रहेगो। तो दामोदरदासजी तो छोटे हते । तातें विनसों कहे जो क्यो बाबा तूं अपने बांटे को द्रव्य लेयगो? तब दामोदरदास कहें जो में तो कुछ समझत नाहीं । तुम बडे हो आछो जानो सो करो । तब विनने द्रव्य सगरो घरमेतें काढिके व द्रव्य के चारि बांटा करे ओर चारोंनके नामनकी चिट्ठी लिखिकें वाके ऊपर डारी । सो जा जाके नामकी चिट्ठी आई सो सो वाने लियो । तब दामोदरदाससों कहें जो तुमारे द्रव्य तुम जहाँ कहो तहाँ धरे । सो या समें दामोदरदास गोखमें बेठे हते । इतनेमें में श्री आचार्य महाप्रभु आप वा मारग होयकें निकसे । सो ऊपरतें दामोदरदासकी दृष्टि परी। तब उहांतें तत्काल ऊठिकें दोरे । कुछ द्रव्य घरकी सुधि न रही।
सो आवतही आपको साष्टांग दंडवत की तब आप श्रीमुखतें कहें जो दमला तूँ आयो? तब दामोदरदासनें कह्यो जो महाराज में तो कबको मारग देखत हूँ। ता पाछे श्री आचार्य महाप्रभु के चरणारविंदके पाछे पाछे दामोदरदास चले। पाछे तें ओर भाई कहन लागे जो दामोदरदास कहां गए? तब काहूने कह्यो जो एक महापुरुष चले जात हते तिनके पाछे वेहू चले जात हते । यह सुनिकें वे तीन्यों भाई उहाँते चले। सो आगे वा नगरके बाहर एक स्थल हतो तहाँ श्री आचार्य जी महाप्रभु बिराजे हे, आगे दामोदरदास बेठे हे । तब देखत ही ए तीन्यो भाई चक्रत होई रहे।
विनकों श्री आचार्य जी महाप्रभु के दरशन साक्षात् तेजोमय तेज:पुंजको भयो सो देखतही विनतें कछू बोल्यो न गयो । अपने मनमेंही बिचारें जो कदाचित् हम बोलेंगे तो यह गाना हमको भस्म कर डारेगी। तो दामोदरदास इनकों देखिकें कहे जो भाई तुम जाउ । वा समें उन भाईननें दामोदरदासकों स्वरूप हू तेजोमय देख्यो सो भय पायकें पाछे फिरि आये । जो दैवीजीव होते तो शरण आवते । श्री आचार्य जी आपको तो नामही हे (दैवोद्धारप्रयत्नात्मा) पाछे दामोदरदासको संग लेके आप श्री आचार्य जी आगे पधारे । तब दामोदरदासको तो कुछ ब्याह भयो न हतो जो इनको स्त्री आय के प्रतिबंध करे। वे प्रभुनसों बोहोत दिननके बिछुरे हते सो आय मेरे । पाछे आपके संग दामोदरदास चले।
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